सतपथ नामक ब्राह्मण पड़ोस के गांव दान-दक्छिणा लेने जाने के लिए तैयार हो रहे थे और ऊधर उसकी मॉं चिंतित थी कि ऐसे सुनसान राह पर बेटे को अकेले कैसे भेजूं??इसी ऊधेड़बुन में मॉं-बेटा सतपथ!!राहें सुनसान हैं फिर तु अकेले कैसे जाएगा?
सतपथ-मॉं अब मैं बच्चा तो रहा नहीं,तो फिर आप क्यों चिंतित हो?
मॉं-बेटा!फिर भी मेरे खातिर तुम किसी को साथ लेकर जाओ|
सतपथ-अपनी ऊंगली के नाखुन काटता हुआ कुछ देर बाद|अपनी कपूर की पोटली ऊठाते हुए कहता है-अम्मा!मुझे डर नहीं,अब मैं चला,कहकर निकलने लगा कि तभी अम्मा को एक तरकीब सुझा और उसने बेटे की कपूर की पोटली में एक केंकड़ा डाल दिया|
गॉंव घूमते-घूमते सतपथ थक हार कर घर की ओर बढ़ा|रास्ते में थकने पर वह पेड़ के नीचे छांव में सुस्ताने लगा चूंकि दक्छिणा काफी वजनी था सो सतपथ थक चुका था|और वह नींद की आगोश में चला गया|पेड़ पर से सांप उतरा और सांप ने पहले सतपथ के फेरे लगा ही रहे थे की कपूर की सुगंध सांप के नाक में पड़ी और वह कपूर की पोटली को खोला और देखते ही देखते केंकड़े ने काम तमाम कर दी|इतने में सतपथ की नींद खुली और वह आंख खुजा रहा था कि उसे कुछ गड़बड़ सा महसुस हुआ,गौर से देखा तो भौंचक रह गया|
उसे अम्मा के सामने किये जिद की ख्याल आई और वह अम्मा की इसके बाद हर बात सुनने लगा|
Friends कैसे लगी story. ़कहानी की सार तो आपने ताड़ ही ली होगी?आवश्यकता है तो करने की|thanks to contribut me.