रास्ता अपना

Sunday, 14 December 2014

बरगद :बिन तेरे

बिन तेरे मेरा अस्तित्व नहीं,
ठूंठ बन चुका होता कब का ,तुमने मुझे संभाला||
         बिन तेरे मेरा अस्तित्व नहीं,
    आज इतना विशाल हुँ तो सिर्फ तुमसे|
       तेरी नरमी से,पैर मेरे मजबुत हुए,
    खड़ा हो सका हुँ तो तेरी मेहरबानी पर||
बगैर मेरे तेरा अस्तित्व तो था ही पर तुमने अपना आहार मुझे है खिलाया||
बेशक आज मैं भी तेरे जीवन में महत्व रखता हुँ क्योंकि अपरदन होने से मैने ही तुम्हें है रोका||
सैंकड़ों राहगिर की पनाह हुँ मैं
सैंकड़ों चिड़िया मु़झ पर घोंसले बनाते पर
इन सभी का बोझ तु खुद ही उठाती||
मेरी डालियों की बोझ इतनी है कि चारों तरफ से मैं तुम्हें बेधुँ फिर भी  तु न कराहे,
मुझपर फल लगें तो पशु-पक्छी बरगद खाने आते हैं न कि जमीन नामक कोई फल खाने||
ये सब सुन तुम्हें कितना बुरा लगता होगा?
पर ये तेरी मान नहीं रखते बल्कि तुझे अपनी सम्पति;जायदाद समझते हैं
बिन तेरे मेरा अस्तित्व नहीं
पर मैं मूक हुँ अन्यथा ऐसा सबक सिखाता कि दुबारा हम पर जुल्म न होता||