छत्तीसगढ़ में कुल जनसंख्या का लगभग 32 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति हैं जो देश के प्रमुख मानव संसाधन हैं जिसका देश के सम्पति पर समान अधिकार है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से जनजाति समुदाय दुर्गम वनांचल में निवासरत रहा है इनकी प्रारम्भ से ही अपनी पृथक सामाजिक, सांस्कृतिक व्यवस्था रहा है इनकी पृथक सामाजिक जीवन भारत के मुख्य समाज से कई वर्ष अलग थलग रहा परन्तु जब अंग्रेज उपनिवेशिक शासन के दौरान जनजातिय समुदाय की ओर ध्यान दिया गया अंग्रेज शासन का मूल उद्देश्य भारत में प्राकृतिक संसाधनों का अत्याधिक दोहन करना था तभी अंग्रेज सरकार द्वारा वन को सार्वजनिक सम्पति के रूप में घोषित कर दिया।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से जनजाति समुदाय दुर्गम वनांचल में निवासरत रहा है इनकी प्रारम्भ से ही अपनी पृथक सामाजिक, सांस्कृतिक व्यवस्था रहा है इनकी पृथक सामाजिक जीवन भारत के मुख्य समाज से कई वर्ष अलग थलग रहा परन्तु जब अंग्रेज उपनिवेशिक शासन के दौरान जनजातिय समुदाय की ओर ध्यान दिया गया अंग्रेज शासन का मूल उद्देश्य भारत में प्राकृतिक संसाधनों का अत्याधिक दोहन करना था तभी अंग्रेज सरकार द्वारा वन को सार्वजनिक सम्पति के रूप में घोषित कर दिया।
जनजातिय समुदाय तब से आदिम समय से निवासरत जल, जंगल, जमीन से वंचित हो गए ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाए गए कदम जनजातिय समुदायों के सामाजिक जीवन एवं संस्कृति में हस्तक्षेप करने जैसे था प्रारम्भ से शान्ति प्रिय,सीधे-साधे लोग इस निर्णय का विरोध किये जिसका परिणाम जनजातिय विद्रोह के रूप में सामने आया जैसे- हलबा विद्रोह, परलकोट विद्रोह, मेरीया विद्रोह, कोई विद्रोह आदि प्रमुख हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हमारे राजनेता एवं सविधान निर्माता इस विषय से भली भाँति परिचित थे कि आदिवासी देश के अभिन्न अंग हैं। जिन्हें राष्ट्र विकास में भागीदारी बनाना आवश्यक समझा गया जिसका परिणाम सविधान में मूल अधिकार बिना किसी भेद भाव के सभी जनजातियों को प्राप्त है एवं सविधान में अनुसूचित जनजाति आयोग का प्रावधान है जो जनजातियों के विकास के लिए कार्य करता है।
हमारे लोक तांत्रिक प्रणाली में जनजाति वर्ग को अनेक उपेक्षाओं का सामना करना पडा है यह दुर्भागपूर्ण है कि आज भी प्रदेश के आदिवासियों को सरकार के विकासात्मक कार्या के लाभ नहीं मिल सका है आज भी यह दुर्गम जंगली क्षेत्र अनेक आधारभूत आवश्यकताओं से वंचित है इस क्षेत्र के मानव संसाधन का उपयोग तभी संभव है जब लोगो को कौशलयुक्त एवं आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति हो जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली सडक आदि हो।
आदिवासी क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न होता है जिसका दोहन राष्ट्र विकास के लिए अपरिहार्य है ऐसे में इन क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधन के दोहन के लिए एक सुनियोजित रणनीति बनाने की जरूरत है जिसका लाभ इन आदिवासियों को भी मिल सकें साथ ही उनकी पृथक सामाजिक सांस्कृतिक पहचान को बनाये रखने के लिए हर संभव प्रयत्न करना चाहिए जिसका आशय एकीकरण के माध्यम से आदिवासी समुदाय राष्ट्र के मुख्य धारा से जुड सकें।
प्रदेश में आदिवासियों को मुख्य धारा से जोडने में असमर्थ के तौर से देखा जा सकता है जिसका परिणाम आज भी आदिवासी समाज में दिखता है जो विभिन्न क्षेत्रों में जैसे- शिक्षा, रोजगार, व्यवसाय में अत्यंत पिछडे हुए हैं जो सरकार की नियोजन की विफलता है। आदिवासी बाहुल्य छतीसगढ़ आज भी अनेक समस्या से जूझ रहा है इस क्षेत्र में अनेक खनिज संसाधन जैसे लोहा टिन कोरण्डम हीरा आदि पाये जाते हैं जिससे सरकार को राजस्व का बडा हिस्सा इन्हीं खनिज संसाधनों से प्राप्त होता है, परन्तु सरकार की आधुनिकŸाम जीवन तकनीकी सुविधा उपलब्ध नहीं है जिससे आदिवासियों का सामान्य बिमारियों से मृत्यु हो जाती है लेकिन देश चंद्रमा में जाने तथा बुलेट ट्रेन का सपना देखता है।
किसी भी स्थिति में विकास के नाम पर आदिवासियों का गला नहीं घोटा जा सकता क्योंकि सरकार खनिज संसाधन, बाँध निर्माण के लिए विशाल भूखण्ड का अधिग्रहण कर लेती है जिससे आदिवासी समाज प्राचीन समय से रह रहे जल, जंगल, जमीन से वंचित हो जाते हैं साथ ही सामाजिक, सांस्कृतिक एकजुटता कमजोर होने लगती है एवं विस्थापन से सामाजिक व्यवस्था टूट जाती है। सरकार क्षतिपूर्ति के तौर पे मुआवजा, आदिवासियों को सुनियोजित तरीके से स्थापित नहीं करती जिसका परिणाम आदिवासियों में रोष, हिंसक विद्रोह के तौर पर सामने आया है जिसका जीता जागता उदाहरण नक्सलवाद है। जो आज एक बड़ी आंतरिक सुरक्षा के चुनौती के रूप में सामने आया है।
आदिवासी अस्मिता एवं राष्ट्र विकास दोनों ही विषय बेहद महत्वपूर्ण हैं किसी भी स्थिति में विकास के नाम पर आदिवासी अस्मिता को और आदिवासी अस्मिता के नाम पर राष्ट्रीय विकास को बली नहीं चढाया जा सकता। एक सुनियोजित रणनीति से इस समस्या को हल किया जा सकता है।
◆ ये लेखकों के अपने विचार हैं।
◆संकलन एवं सहयोग -विवेक खेस्स, लोचन बेहरा, पंकज तिग्गा, दैविक कुमार सिंह(टायपिस्ट)
अभय दीप बेक
(मुख्य लेखक एवं विचारक)