रास्ता अपना

Sunday, 2 November 2014

अनहोनी!जिसे होनी ही थी.

             धन-वैभव,सुख समृद्धि से सम्पन राजपरिवार अपने राजमहल में सेवकों के साथ शान-ऐ-शौकत के साथ जीवन व्यतित कर रहा था|
                      राज्य में उस बरस बारिश नहीं हुई जिससे फसल खेतों में ही सूख गये और राज्य की दशा भोजन के लिए हहाकार और त्राही-त्राही के रूप में अभिव्यक्त हुई|यह देख राजपुत्री से रहा नहीं गया और उसने राजभ्रमण की इच्छा जाहिर की|अगले दिन राजदरबार
से आदेश जारी हुई जिसमें राजपुत्री के रास्ते पर चमडे की चादर बिछाने की बात कही गई थी|चूंकि यह राजाग्या थी सो क्रियान्वयन के स्तर पर कोई कोताही नहीं बरती गई|
          चमडे की चादर बिछाने के क्रम में एक दिन राज्य के चमडे की गोदाम खाली हो गई चूंकि राजपुत्री की टोली निकल चूकि थी सो राज मंत्रीयों ने राज्य के गाय,भैंस और अन्य पशुओं को  चमडे प्राप्त करने के लिए मारने की इजाजत दी|एक फकीर से यह देख रहा नहीं गया वह राजदरबार में सलाह लेकर पहुंचा|व्यक्ति:   हे राजन!(साष्टांग प्रणाम कर) राजपुत्री की खुशी के लिए आज  राज्य की समृद्धि समझे जाने वाले पशु मारे जा रहे हैं क्यों न राजपुत्री के पैरों पर चमडे लपेट दी जाये| राजा को यह  सलाह नगवार गुजरा और उस फकीर को फांसी दे दी गई|
     राजपुत्री की टोली आगे बढ़ती रही और बेजुबान,बेकसूर जानवर मारे जाते रहे|एक दिन ऐसा आया कि राज्य के जानवर भी न रहे.|तभी राजा की अकल फिरी और पुत्री के पैर पर चमड़े लपेटे गये और राजभ्रमण तो सफल हुआ लेकिन ये क्या राज्य में अब न समृद्धि रही न प्रजा...
              दोस्तो आज के हमारे जूते की विचार उस फकीर की थी.आखिर जो "अनहोनी!जिसे होनी ही थी" वो अच्छे के लिए हुआ...हमारे life में भी कुछ-कुछ अनहोनी हो जाती है घबरायें नहीं एकान्त ढुंढे और कोशिश करें ढुंढने की|कि यह घटना किस ओर इंगित कर रहा है और right time में right decision लें||
                
                      With hope
       'रास्ता अपना बनाओ,उसे अपनाओ'
           

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